शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
कूचा-ए-जाँ में सदा करती है
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1083) Peoples Rate This
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
ज़िंदगी बे-साएबाँ बे-घर कहीं ऐसी न थी
ख़्वाब
शौक़-ए-रक़्स से जब तक उँगलियाँ नहीं खुलतीं
बाब-ए-हैरत से मुझे इज़्न-ए-सफ़र होने को है
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
इसी में ख़ुश हूँ मिरा दुख कोई तो सहता है
तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना
गूँगे लबों पे हर्फ़-ए-तमन्ना किया मुझे
हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न
ए'तिराफ़
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए