तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना
कितना अच्छा लगता है फूल जैसे बच्चों पर
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शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
इतने घने बादल के पीछे
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
मसअला
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
एक मंज़र
समुंदरों के उधर से कोई सदा आई
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
ख़ुद से मिलने की फ़ुर्सत किसे थी