नन्ही लड़की
साहिल के इतने नज़दीक
रेत से अपने घर न बना
कोई सरकश मौज इधर आई तो
तेरे घर की बुनियादें तक बह जाएँगी
और फिर उन की याद में तू
सारी उम्र उदास रहेगी!
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कभी कभार उसे देख लें कहीं मिल लें
वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
अब्र बरसे तो इनायत उस की
रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी
मक़्तल-ए-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरह
ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में
टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
गए जनम की सदा
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद