वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की
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इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई
तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना
बहुत से लोग थे मेहमान मेरे घर लेकिन
बहुत रोया वो हम को याद कर के
शब वही लेकिन सितारा और है
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
तू बदलता है तो बे-साख़्ता मेरी आँखें
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है