किसी के संग-ए-दर से एक मुद्दत सर नहीं उट्ठा
मोहब्बत में अदा की हैं नमाज़ें बे-वुज़ू बरसों
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बदली हुई है चर्ख़ की रफ़्तार आज-कल
वाइ'ज़ को लअ'न-तअ'न की फ़ुर्सत है किस तरह
हवा में जब उड़ा पर्दा तो इक बिजली सी कौंदी थी
मेरी इज़्ज़त बढ़ गई इक पान में
इक अदना सा पर्दा है इक अदना सा तफ़ावुत
हज़ार शर्म करो वस्ल में हज़ार लिहाज़
निकाली जाए किस तरकीब से तक़रीर की सूरत
दिल की चोरी में जो चश्म-ए-सुर्मा-सा पकड़ी गई
मख़्लूक़ को तुम्हारी मोहब्बत में ऐ बुतो
मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता
पहलू-ओ-पुश्त-ओ-सीना-ओ-रुख़्सार आइना