मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता
उड़ा ही लेता दस्त-ए-कातिब-ए-तक़दीर से काग़ज़
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(404) Peoples Rate This
जो दिल मिरा नहीं मुझे उस दिल से क्या ग़रज़
वक़्त पर आते हैं न जाते हैं
अहल-ए-दुनिया बावले हैं बावलों की तू न सुन
मुझ को क्या फ़ाएदा गर कोई रहा मेरे ब'अद
है अपने क़त्ल की दिल-ए-मुज़्तर को इत्तिलाअ
मख़्लूक़ को तुम्हारी मोहब्बत में ऐ बुतो
ऐ सबा चलती है क्यूँ इस दर्जा इतराई हुई
किस तरह कर दिया दिल-ए-नाज़ुक को चूर-चूर
कुछ तबीअत आज-कल पाता हूँ घबराई हुई
बहुत ही साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ आ गया तक़दीर से काग़ज़
किसी के संग-ए-दर से एक मुद्दत सर नहीं उट्ठा
कभी न जाएगा आशिक़ से देख-भाल का रोग