दोस्ती कहाँ जाए?
उस की आस्तीनों से
बिफरे साँप निकले हैं
गुथ गए हैं मुँह खोले
बीन वज्द करती है
और सपेरा हँसता है
Parveen Shakir
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दिल की धड़कनों से इक दास्ताँ बनाना है
तुम ख़ुनुक जज़्बा हो बे-ताबी-ए-फ़न क्या जानो?
बाँध कर कफ़न सर से यूँ खड़ा हूँ मक़्तल में
मस्ती में नज़र चमक रही है साक़ी
बुत-गरी-ए-जमाल में गुज़रा
शिकायत कर रहे हैं सज्दा-हा-ए-राएगाँ मुझ से
साग़र-ए-सिफ़ालीं को जाम-ए-जम बनाया है
निपटेंगे दिल से मार्का-ए-रह-गुज़र के ब'अद
बहरा गोया
ये ताज के साए में ज़र-ओ-सीम के ख़िर्मन
ऐ बे-दिलो हरीफ़-ए-शब-ए-तार क्यूँ हुए
बे-चेहरगी