जब मैं बच्चा था
रावी के गालों से डरता था
अब दुश्मन की चालों से डरता हूँ
मेरे बचपन में
आग की अतराफ़
द्राविड़ लड़कियाँ गीत गाती थी
और अब मैं एक होटल में
बैंड बजाता हूँ
और लोमड़ी की खाल से
अपना लिबास सीता हूँ
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(348) Peoples Rate This
मुलाक़ात
वो बातें इश्क़ कहता था कि सारा घर महकता था
दरवेश
एक पत्थर कि दस्त-ए-यार में है
मेरी मोहब्बत चाहती है
पहाड़ी की आख़िरी शाम
मंसूर-हल्लाज
दजला के ख़्वाब
आज सितारे आँगन में हैं उन को रुख़्सत मत करना
साया नहीं है दूर तक साए में आएँ किस तरह
शहज़ादे की मौत
मोर्निंग की एक तस्वीर