एक पत्थर कि दस्त-ए-यार में है
फूल बनने के इंतिज़ार में है
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हम कि मजनूँ को दुआ कहते हैं
जाने दो इन नग़्मों को आहंग-ए-शिकस्त-ए-साज़ न समझो
शहज़ादे की मौत
एक अजब शहज़ादा मेरे बाग़ों का
शहर की गलियाँ घूम रही हैं मेरे क़दम के साथ
मंसूर-हल्लाज
वीरानी
अपनी नाकामियों पे आख़िर-ए-कार
या इलाहाबाद में रहिए जहाँ संगम भी हो
मोर्निंग की एक तस्वीर
दजला के ख़्वाब
मैं जिन्हें फ़रेब समझूँ तिरी याद-ए-मेहरबाँ के