या इलाहाबाद में रहिए जहाँ संगम भी हो
या बनारस में जहाँ हर घाट पर सैलाब है
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आसमाँ पर इक सितारा शाम से बेताब है
मेरी मोहब्बत चाहती है
दस्त-ए-जुनूँ में दामन-ए-गुल को लाने की तदबीर करें
साया नहीं है दूर तक साए में आएँ किस तरह
एक पत्थर कि दस्त-ए-यार में है
कपास का फूल
हम सितारों की तरह डूब गए
मंसूर-हल्लाज
अपने सब चेहरे छुपा रक्खे हैं आईने में
मैं बुलंदियों पर जल रहा हूँ
शहर की गलियाँ घूम रही हैं मेरे क़दम के साथ