हम को आपस में मोहब्बत नहीं करने देते
इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में
Mohsin Naqvi
Gulzar
Anwar Masood
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
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तह में जो रह गए वो सदफ़ भी निकालिए
यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना
चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अब जिस के जी में आए वही पाए रौशनी
चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
हालात की उजड़ी महफ़िल में अब कोई सुलगता साज़ नहीं
मैं जब 'क़तील' अपना सब कुछ लुटा चुका हूँ
खुला है झूट का बाज़ार आओ सच बोलें
साँवली
उकताहट
इस दौर में तौफ़ीक़-ए-अना दी गई मुझ को