तुम आ सको तो शब को बढ़ा दो कुछ और भी
अपने कहे में सुब्ह का तारा है इन दिनों
Anwar Masood
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Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
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Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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फूल पे धूल बबूल पे शबनम देखने वाले देखता जा
उस पर तुम्हारे प्यार का इल्ज़ाम भी तो है
आया ही था अभी मिरे लब पे वफ़ा का नाम
ये मो'जिज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
मैं जब 'क़तील' अपना सब कुछ लुटा चुका हूँ
मंज़र समेट लाए हैं जो तेरे गाँव के
राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ
प्यार दुलार के साए साए चला करो
क्या जाने किस ख़ुमार में किस जोश में गिरा
घनघोर घटा के आँचल को जब काली रात निचोड़ गई
ये किस ने कहा तुम कूच करो बातें न बनाओ इंशा-जी
क्या इश्क़ था जो बाइस-ए-रुस्वाई बन गया