यक नुक्ता नुक्ता-दाँ कूँ है काफ़ी शनास का
ऐ क़िस्सा-ख़्वाँ न बोल हिकायत क़यास का
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बर-अक्स क्यूँ हुआ है ज़माने के फेर में
जूँ चमन के देख बुलबुल ख़ुश हुआ
दिलबराँ का अपस कूँ दास न कर
ऐ सखीयन मैं ने देख्या संग कर के यार का
यार अब है सो कुछ अजब है रे
जाऊँ मैं उस निगार पर क़ुर्बान