सूरज की तरह मौत मिरे सर पे रहेगी
मैं शाम तलक जान के ख़तरे में रहूँगा
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डूब जाएँ न फूल की नब्ज़ें
समय हो गया
मैं इक पहाड़ी तले दबा हूँ किसे ख़बर है
अना को ख़ुद पर सवार मैं ने नहीं क्या था
मगर वो न आया
बुरादा उड़ रहा है
अभी वक़्त है लौट जाओ
बड़ा चक्कर लगाएँ
लाल बैग उड़ गया
मरातिब-ए-वजूद भी अजीब हैं
झुका हुआ है जो मुझ पर वजूद मेरा है
कुछ रोज़ मैं इस ख़ाक के पर्दे में रहूँगा