डूब जाएँ न फूल की नब्ज़ें
ऐ ख़ुदा मौसमों की साँसें खोल
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मगरमच्छ ने मुझे निगला हुआ है
ये कैसी घड़ी है
उसे शौक़-ए-ग़ोता-ज़नी न था वो कहाँ गया
बुरादा उड़ रहा है
एक ज़ंजीर-ए-गिर्या मिरे साथ थी
मुझे अपना जल्वा दिखा
दर्द होता है
अजब पानी है
ग़ार में बैठा शख़्स
अना को ख़ुद पर सवार मैं ने नहीं क्या था
कुछ रोज़ मैं इस ख़ाक के पर्दे में रहूँगा
वही मख़दूश हालत