Ghazals of Rasheed Qaisrani

Ghazals of Rasheed Qaisrani
नामरशीद क़ैसरानी
अंग्रेज़ी नामRasheed Qaisrani
जन्म की तारीख1930
मौत की तिथि2010

यूँ भी इक बज़्म-ए-सदा हम ने सजाई पहरों

ये ज़ाविया सूरज का बदल जाएगा साईं

ये कौन सा सूरज मिरे पहलू में खड़ा है

उठ गई आज चाँद की डोली

तुझ से भी हसीं है तिरे अफ़्कार का रिश्ता

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

सहरा सहरा बात चली है नगरी नगरी चर्चा है

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

पानी की तरह रेत के सीने में उतर जा

नाम हमारा दुनिया वाले लिखेंगे जी-दारों में

मुँह किस तरह से मोड़ लूँ ऐसे पयाम से

मिरी जबीं का मुक़द्दर कहीं रक़म भी तो हो

मेरे लिए तो हर्फ़-ए-दुआ हो गया वो शख़्स

माना वो एक ख़्वाब था धोका नज़र का था

माना वो एक ख़्वाब था धोका नज़र का था

मैं ने कहीं थीं आप से बातें भली भली

मैं ने काग़ज़ पे सजाए हैं जो ताबूत न खोल

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

कौन कहता है तिरे दिल में उतर जाऊँगा

जब रात के सीने में उतरना है तो यारो

है शौक़ तो बे-साख़्ता आँखों में समो लो

गुम-गश्ता मंज़िलों का मुझे फिर निशान दे

गुम्बद-ए-ज़ात में अब कोई सदा दूँ तो चलूँ

गाता रहा है दूर कोई हीर रात भर

दीप से दीप जलाओ तो कोई बात बने

दरियाओं का सहराओं में बहना मिरा क़िस्सा

दम-भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी

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