रुस्वाई तो वैसे भी तक़दीर है आशिक़ की
ज़िल्लत भी मिली हम को उल्फ़त के फ़साने से
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मैं न पीता तो तिरा लिख्खा ग़लत हो जाता
ये हक़ीक़त है कि होता है असर बातों में
गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजिए
तुम नहीं ग़म नहीं शराब नहीं
आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजे
नहीं है ये तिरा कूचा नहीं है
इतना तो हुआ ऐ दिल इक शख़्स के जाने से
वो अंजुमन में रात अजब शान से गए
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा