बस इस ख़याल से देखा तमाम लोगों को
जो आज ऐसे हैं कैसे वो कल रहे होंगे
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
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शिकस्ता-पाई से होती हैं बस्तियाँ आबाद
कैसे जानूँ कि जहाँ ख़्वाब-नुमा होता है
किसी इंसान को अपना नहीं रहने देते
ख़ुद से निकलूँ तो अलग एक समाँ होता है
जिस को तय कर न सके आदमी सहरा है वही
ख़ाक में मिलती हैं कैसे बस्तियाँ मालूम हो
किरदार कह रहे हैं कुछ अपनी ज़बान में
अलग हैं हम कि जुदा अपनी रह-गुज़र में हैं
एक रहने से यहाँ वो मावरा कैसे हुआ
बराए नाम सही साएबाँ ज़रूरी है
मैं ढूँड लूँ अगर उस का कोई निशाँ देखूँ