बंद आँखें करूँ और ख़्वाब तुम्हारे देखूँ
तपती गर्मी में भी वादी के नज़ारे देखूँ
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छोड़ कर काशानों को ताइर गए
मुझ को वीरान सी रातों में जगाने वाले
अब के बारिश को भी तो आने दे
पहले होता था बहुत अब कभी होता ही नहीं
मुझ को हर लम्हा नई एक कहानी देगा
याद आता है मुझे रेत का घर बारिश में
इक बर्फ़ का दरिया अंदर था
हवा ने सीने में ख़ंजर छुपा के रक्खा है
उसे यक़ीं मिरी बातों पे अब न आएगा
नींद इन आँखों में बन कर आए कोई
थपकियाँ दे के तिरे ग़म को सुलाया हम ने