तुम न तौबा करो जफ़ाओं से
नई सुब्ह
शाम को सुब्ह अँधेरे को उजाला लिक्खें
ये इख़्लास-ए-गराँ-माया बहुत है
सदा-ए-जावेदाँ
दौर-ए-चर्ख़-ए-कबूद जारी है
आप से क्या दोस्ती होने लगी
आख़िर तड़प तड़प के ये ख़ामोश हो गया
तैरेगा फ़ज़ा में जो समुंदर न मिलेगा
दिल वो सहरा है कि जिस में रात दिन
फिर किसी बेवफ़ा की याद आई
इश्क़ क्या चीज़ है ये पूछिए परवाने से