रोज़ इक बात मिरे दिल को सताती है 'ज़िया'
इस क़दर टूट के तुम ने उसे चाहा क्यूँ है
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(373) Peoples Rate This
दिल-ए-बर्बाद में फिर उस की तमन्ना क्यूँ है
बिस्तर-ए-हिज्र की शिकनों पे कहानी लिख दे
क़तरे को तुम दरिया कर दो
आँख के साहिल पर आते ही अश्क हमारे डूब गए
अश्क पीते रहे हर जाम पे हँसते हँसते
किसी को कुछ नहीं मिलता है आरज़ू के बग़ैर
उस को देखा तो दिखा कुछ भी नहीं
तेरे तसव्वुरात से बचना है अब मुहाल भी
दिल का दिलबर जब से दिल की धड़कन होने वाला है