चश्म-ए-तर ने बहा के जू-ए-सरिश्क
मौज-ए-दरिया को धार पर मारा
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बोलना बादा-कशों से न ज़रा ऐ वाइज़
जिस के हम बीमार हैं ग़म ने उसे भी राँदा है
इश्क़-ए-रुख़-ओ-ज़ुल्फ़ में किया कूच
वो मय-परस्त हूँ बदली न जब नज़र आई
जो बीच में आइना हो प्यारे इधर हमारे उधर तुम्हारे
मिरी बे-रिश्ता-दिली से उसे मज़ा मिल जाए
नज़रों से गुलों की नौ-निहालो
हुई तो जा दिल में उस सनम की नमाज़ में सर झुका झुका कर
हस्ती-ओ-अदम में नफ़स-ए-चंद बशर के
लुंज वो पा-ए-तलब हूँ कहीं जा ही न सकूँ
दुनिया भी अजब हसीन ज़न है