Ghazals of Shahzad Ahmad (page 2)

Ghazals of Shahzad Ahmad (page 2)
नामशहज़ाद अहमद
अंग्रेज़ी नामShahzad Ahmad
जन्म की तारीख1932
मौत की तिथि2012
जन्म स्थानLahore

मैं जो रोता हूँ तो कहते हो कि ऐसा न करो

मैं अकेला हूँ यहाँ मेरे सिवा कोई नहीं

लगे थे ग़म तुझे किस उम्र में ज़माने के

लबों पे आ के रह गईं शिकायतें कभी कभी

कुछ न कुछ हो तो सही अंजुमन-आराई को

कोशिश है शर्त यूँही न हथियार फेंक दे

कितनी बे-नूर थी दिन भर नज़र-ए-परवाना

ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई

ख़िज़ाँ जब आए तो आँखों में ख़ाक डालता हूँ

खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का

ख़ल्क़ ने छीन ली मुझ से मिरी तन्हाई तक

कौन कहता है कि दरिया में रवानी कम है

कमरों में छुपने के दिन हैं और न बरहना रातें हैं

कैसे गुज़र सकेंगे ज़माने बहार के

कहीं भी साया नहीं किस तरफ़ चले कोई

कब तक कड़कती धूप में आँखें जलाएँ हम

जो शजर सूख गया है वो हरा कैसे हो

जो दिल में खटकती है कभी कह भी सकोगे

जिस ने तिरी आँखों में शरारत नहीं देखी

जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुस्वाई

जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया

जब आफ़्ताब न निकला तो रौशनी के लिए

जाने किस सम्त से हवा आई

जान मुक़द्दर में थी जान से प्यारा न था

इसी बाइस ज़माना हो गया है उस को घर बैठे

इश्क़ वहशी है जहाँ देखेगा

इस दोशीज़ा मिट्टी पर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा कोई भी नहीं

इस दौर-ए-बे-दिली में कोई बात कैसे हो

इस भरे शहर में आराम मैं कैसे पाऊँ

इबलीस भी रख लेते हैं जब नाम फ़रिश्ते

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