मैं सोचता हूँ कभी ऐसा हो न जाए कहीं

मैं सोचता हूँ कभी ऐसा हो न जाए कहीं

कि ख़्वाब आँख में हो आँख सो न जाए कहीं

मैं जानता हूँ बहुत रोज़ वो न ठहरेगा

मगर इस अर्से में वो ज़हर बो न जाए कहीं

जो एक अक्स बनाया था पिछली बारिश ने

वो शक्ल अब के से बरसात धो न जाए कहीं

उसे ये शिकवा कि मैं ने न पूछा हाल उस का

मुझे ये ख़ौफ़ में बोला तो रो न जाए कहीं

बढ़ी जो उम्र तो अब तजरबा सताने लगा

है डर कि बूढ़ा शजर हम से खो न जाए कहीं

बड़ों के फ़ैज़ से हासिल है 'शम्स' को ये कमाल

कि उस के साथ जो आ जाए तो न जाए कहीं

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In Hindi By Famous Poet Shams Tabrezi. is written by Shams Tabrezi. Complete Poem in Hindi by Shams Tabrezi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.