अब मुझ से ये रात तय न होगी
पत्थर ये जबीं न है न होगी
ख़ुर्शीद न हो तो शहर-ए-दिल में
परछाईं सी कोई शय न होगी
दरवाज़ा खटक उठेगा इक बार
दस्तक कभी पय-ब-पय न होगी
आँखों में लहू संभाल रखना
अब के मीना में मय न होगी
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रात शहर और उस के बच्चे
बैत-ए-अंकबूत
सुर्ख़ सीधा सख़्त नीला दूर ऊँचा आसमाँ
रेशा रेशा बिखर गया मैं न कि तू
मौसम-ए-संग-ओ-रंग से रब्त-ए-शरार किस को था
हर जल्वा-ए-हुस्न बे-वतन है
दर-पा-ए-अजल
बयान सफ़ाई
आब ओ गिया से बे-नियाज़ सर्द जबीन-ए-कोह पर
देखिए बे-बदनी कौन कहेगा क़ातिल है
रफ़्तार ओ सदा गुम्बद-ए-अफ़्लाक में आए
पत्थर की भूरी ओट में लाला खिला था कल