मुझे मालूम है
मेरी तमाम अन-सुनी दस्तकों
बिना पढ़ी चिट्ठियों
मायूस दरख़्वास्तों के एवज़
एक लम्बी ख़ामोशी के बअ'द
वह खटखटाएगा मेरा दर
और मैं
घर पर नहीं मिलूँगा
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
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Rahat Indori
Gulzar
Mir Taqi Mir
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मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा
सुनहरा ही सुनहरा वादा-ए-फ़र्दा रहा होगा
लम्बी ख़ामोशी की साज़िश को हराए कोई
मेरे अंदर
चुनाव
अपनी गुमशुदगी की अफ़्वाहें मैं फैलाता रहा
ये भी हुआ कि फ़ाइलों के दरमियाँ मिलीं
हम ने ख़तरा मोल लिया नादानी में
किसी नय रूह को जिस्मी क़बाएँ भेजी हैं
हम न सही
रत-जगे
धुँद