वहम के इस जंगल से बाहर जाने को
कभी कभी एक राह नज़र तो आती है
बढ़ता भी हूँ उस जानिब थोड़ा सा मगर
शक की धुँद से
ऐनक के शीशे धुँदले हो जाते हैं
सब रस्ते खो जाते हैं
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Anwar Masood
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(513) Peoples Rate This
रत-जगे
इन्द्र-धनुष बन जाएँ
ये भी हुआ कि फ़ाइलों के दरमियाँ मिलीं
मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा
चुनाव
किसी नय रूह को जिस्मी क़बाएँ भेजी हैं
हम न सही
हम ने ख़तरा मोल लिया नादानी में
सुनहरा ही सुनहरा वादा-ए-फ़र्दा रहा होगा
मुझ को आज न सोने देना
मेरे अंदर
लम्बी ख़ामोशी की साज़िश को हराए कोई