आसमानों से फ़रिश्ते जो उतारे जाएँ
वो भी इस दौर में सच बोलें तो मारे जाएँ
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1975) Peoples Rate This
वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है
तिरी तलाश में जाने कहाँ भटक जाऊँ
जाने किस मोड़ पे ले आई हमें तेरी तलब
किसी से और तो क्या गुफ़्तुगू करें दिल की
नाज़ कर नाज़ कि ये नाज़ जुदा है सब से
हाए इक शख़्स जिसे हम ने भुलाया भी नहीं
आईना-ए-वहशत को जिला जिस से मिली है
कब तक इस प्यास के सहरा में झुलसते जाएँ
मक़्तल-ए-जाँ से कि ज़िंदाँ से कि घर से निकले
हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं
गर क़यामत ये नहीं है तो क़यामत क्या है