वो आए जाता है कब से पर आ नहीं जाता
वही सदा-ए-क़दम का है सिलसिला कि जो था
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बस्ता-लब था वो मगर सारे बदन से बोलता था
वो ध्यान की राहों में जहाँ हम को मिलेगा
रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था
मालूम है 'उर्फ़ी' जो है क़िस्मत में हमारी
फिर क्या जो फूट फूट के ख़ल्वत में रोइए
सबा से आती है कुछ बू-ए-आश्ना मुझ को
चला था मैं तो समुंदर की तिश्नगी ले कर
दीवाना-वार नाचिये हँसिए गुलों के साथ