Ghazals of Waheed Akhtar

Ghazals of Waheed Akhtar
नामवहीद अख़्तर
अंग्रेज़ी नामWaheed Akhtar
जन्म की तारीख1935
मौत की तिथि1996
जन्म स्थानAligarh

ज़बान-ए-ख़ल्क़ पे आया तो इक फ़साना हुआ

उन को रोज़ इक ताज़ा हीला एक ख़ंजर चाहिए

उम्र को करती हैं पामाल बराबर यादें

तुम गए साथ उजालों का भी झूटा ठहरा

तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाए

सहराओं में दरिया भी सफ़र भूल गया है

सफ़र ही बाद-ए-सफ़र है तो क्यूँ न घर जाऊँ

रुख़्सत-ए-नुत्क़ ज़बानों को रिया क्या देगी

रहे वो ज़िक्र जो लब-हा-ए-आतिशीं से चले

रात भर ख़्वाब के दरिया में सवेरा देखा

लिपटी हुई फिरती है नसीम उन की क़बा से

क्यूँ तिरी क़ंद-लबी ख़ुश-सुख़नी याद आई

ख़ुश्बू है कभी गुल है कभी शम्अ कभी है

कतरा के गुल्सिताँ से जो सू-ए-क़फ़स चले

कहीं शुनवाई नहीं हुस्न की महफ़िल के ख़िलाफ़

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

हम ने देखा है मोहब्बत का सज़ा हो जाना

हम को मंज़ूर तुम्हारा जो न पर्दा होता

हम जो टूटे तो ग़म-ए-दहर का पैमाना बने

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

दीवानों को मंज़िल का पता याद नहीं है

दफ़्तर-ए-लौह ओ क़लम या दर-ए-ग़म खुलता है

अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे

आँख जो नम हो वही दीदा-ए-तर मेरा है

आग अपने ही दामन की ज़रा पहले बुझा लो

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