सैंकड़ों दिलकश बहारें थीं हमारी मुंतज़िर
हम तिरी ख़्वाहिश में लेकिन ठोकरें खाते रहे
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रात भर फ़ुर्क़त के साए दिल को दहलाते रहे
आँसू फ़लक की आँख से टपके तमाम रात
ग़ुरूर-ओ-नाज़-ओ-तकब्बुर के दिन तो कब के गए
जो ज़ेहन ओ दिल में इकट्ठा था आस का पानी
सूखी ज़मीं को याद के बादल भिगो गए
वो चाँदनी वो तबस्सुम वो प्यार की बातें