रोज़ सुनता हूँ मैं हँसने की सदा
कौन ये मेरे सिवा है मुझ में
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(902) Peoples Rate This
अजनबी ख़ुशबू की आहट से महक उट्ठा बदन
'ज़की' हमारा मुक़द्दर हैं धूप के ख़ेमे
इताब-ओ-क़हर का हर इक निशान बोलेगा
सिमटे हुए जज़्बों को बिखरने नहीं देता
भरे तो कैसे परिंदा भरे उड़ान कोई
कौन कहता है गुम हुआ परतव
बे-मकाँ मेरे ख़्वाब होने लगे
हम भी कहने लगे हैं रात को रात
दरीदा-जैब गरेबाँ भी चाक चाहता है
तिरे बग़ैर कटे दिन न शब गुज़रती है