कौन बाँधेगा मिरी बिखरी हुई उम्मीद को
खुल रहा है अब तो हर हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का
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हो सितम कैसा भी अब हालात की शमशीर का
जो हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ
मोहब्बत करने वाले दर्द में तन्हा नहीं होते
हम ने मिल-जुल के गुज़ारे थे जो दिन अच्छे थे
देखा न तुझे ऐ रब हम ने हाँ दुनिया तेरी देखी है
वफ़ा और इश्क़ के रिश्ते बड़े ख़ुश-रंग होते हैं
थी याद किस दयार की जो आ के यूँ रुला गई
मुझे अय्यारियाँ सब आ गई हैं
जो होगा सब ठीक ही होगा होने दो जो होना है
बात चल निकलेगी फिर इक़रार की इंकार की
दुख पे मेरे रो रहा था जो बहुत
दोस्तों की बज़्म में साग़र उठाए जाएँगे