जो हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ
जब जहाँ जो हो गया अच्छा हुआ
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ये क्या हुआ कि अब तुझी से बद-गुमाँ मैं हो गया
ख़याल-ए-यार का जल्वा यहाँ भी था वहाँ भी था
ज़िंदगी सुंदर ग़ज़ल है दोस्तो
हम ने मिल-जुल के गुज़ारे थे जो दिन अच्छे थे
मुझे अय्यारियाँ सब आ गई हैं
कौन जाने किस घड़ी याँ क्या से क्या हो कर रहे
एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी
मिरे हर ज़ख़्म पर इक दास्ताँ थी उस के ज़ुल्मों की
मिरी यादें भला तुम किस तरह दिल से मिटाओगे
किधर का था किधर का हो गया हूँ
सुबू उठा मिरे साक़ी कि रात जाती है