मुझे अय्यारियाँ सब आ गई हैं
मैं अब तेरे नगर का हो गया हूँ
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आ कि चाहत वस्ल की फिर से बड़ी पुर-ज़ोर है
'आज़िम' तेरी बर्बादी में सब ने मिल-जुल कर काम किया
ज़र्फ़ है किस में कि वो सारा जहाँ ले कर चले
सब्र की तकरार थी जोश ओ जुनून-ए-इश्क़ से
नीला अम्बर चाँद सितारे बच्चों की जागीरें हैं
देखा न तुझे ऐ रब हम ने हाँ दुनिया तेरी देखी है
एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी
ख़ाक से थे ख़ाक से ही हो गए
रंग आ जाता था उन की दीद से रुख़ पर मिरे
सिलसिले सब रुक गए दिल हाथ से जाता रहा
ये क्या हुआ कि अब तुझी से बद-गुमाँ मैं हो गया