जिस्म की मिट्टी न ले जाए बहा कर साथ में
दिल की गहराई में गिरता ख़्वाहिशों का आबशार
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चारों तरफ़ से मौत ने घेरा है ज़ीस्त को
ऐनक के शीशे पर
पत्थर पर तस्वीर बना कर
गिरते रहे नुजूम अंधेरे की ज़ुल्फ़ से
खिड़की ने आँखें खोली
फिर बालों में रात हुई
अलिफ़ लफ़्ज़ ओ मआनी से मुबर्रा
खिड़की अंधी हो चुकी है
तुम को दावा है सुख़न-फ़हमी का
जलने लगे ख़ला में हवाओं के नक़्श-ए-पा
इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला
वो तुम तक कैसे आता