न हो या रब ऐसी तबीअत किसी की
कि हँस हँस के देखे मुसीबत किसी की
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ख़बर देती है याद करता है कोई
वही जो हया थी निगार आते आते
तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो
फ़लक उन से जो बढ़ कर बद-चलन होता तो क्या होता
हमारा कोह-ए-ग़म क्या संग-ए-ख़ारा है जो कट जाता
मुझे गुम-शुदा दिल का ग़म है तो ये है
कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं