मैं हूँ बेगाना-ए-जहाँ 'अफ़ज़ल'
क्यूँ करे कोई इंतिज़ार मिरा
बद-नुमा ख़ुद को मैं समझता था
आइना ही था दाग़-दार मिरा
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हमारे चारों तरफ़ है हुजूम काँटों का
बुलंदी से कभी वो आश्नाई कर नहीं सकता
दवा-ए-दर्द-ए-ग़म-ओ-इज़्तिराब क्या देता
अब भी रातें मिरी महकती हैं
दश्त में तपते ग़ुबारों से तयम्मुम कर के
जो मुज़य्यन हों तिरे हुस्न की ताबानी से
ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ
दयार-ए-इश्क़ में महरूमियों के हैं चर्चे
कर दिया ख़ुद को समुंदर के हवाले हम ने
तू है ज़ाहिर परस्त ऐ दुनिया
मैं ज़बाँ रखते हुए ख़ामोश हूँ
यूँ इलाज-ए-दिल बीमार किया जाएगा