अब भी रातें मिरी महकती हैं
एक दिन ख़्वाब में वो आता था
चलते चलते हुई कोई आहट
मुड़ के देखा तो मेरा साया था
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अब तो हर एक अदाकार से डर लगता है
हर नग़मा-ए-पुर-दर्द हर इक साज़ से पहले
चल रहे हैं क़तार में सूरज
ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ
ग़मों का एक तूफ़ाँ दिल के अंदर शोर करता है
शे'र की मैं रदीफ़ बन जाऊँ
तेरे जल्वों को रू-ब-रू कर के
यादों के नशेमन को जलाया तो नहीं है
दिखा न ख़्वाब हसीं ऐ नसीब रहने दे
यूँ इलाज-ए-दिल बीमार किया जाएगा
जो मुज़य्यन हों तिरे हुस्न की ताबानी से
मैं हूँ बेगाना-ए-जहाँ 'अफ़ज़ल'