तू है ज़ाहिर परस्त ऐ दुनिया
महके गेसू का दर्द क्या जाने
सब तो झंकार के हैं मतवाले
कोई घुंघरू का दर्द क्या जाने
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Wasi Shah
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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हैं आँधियों में भी रौशन चराग़-ए-हक़ 'अफ़ज़ल'
लब हमारे ख़मोश रहते हैं
अब तो हर एक अदाकार से डर लगता है
क्या कभी उस से मुलाक़ात हुई है तेरी
ये कौन आया है गुलशन में ताज़गी ले कर
ये हक़ीक़त है वो कमज़ोर हुआ करती हैं
बुलंदी से कभी वो आश्नाई कर नहीं सकता
चल रहे हैं क़तार में सूरज
दश्त में तपते ग़ुबारों से तयम्मुम कर के
हमारी क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ का सानी नहीं कोई
अश्क आँखों में लिए आठों पहर देखेगा कौन