उस की ख़ुशबू से मोअ'त्तर है मरी तन्हाई
याद उस की मुझे तन्हा नहीं होने देती
इब्न-ए-आदम हूँ ख़ता होती है मुझ से तस्कीन
उस की रहमत मुझे रुस्वा नहीं होने देती
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लब हमारे ख़मोश रहते हैं
हर नग़मा-ए-पुर-दर्द हर इक साज़ से पहले
मैं ज़बाँ रखते हुए ख़ामोश हूँ
हैं आँधियों में भी रौशन चराग़-ए-हक़ 'अफ़ज़ल'
दवा-ए-दर्द-ए-ग़म-ओ-इज़्तिराब क्या देता
दश्त में तपते ग़ुबारों से तयम्मुम कर के
इस क़दर जल्वा-ए-जानाँ को हैं बे-ताब आँखें
तू है ज़ाहिर परस्त ऐ दुनिया
ग़ज़ल का हुस्न है और गीत का शबाब है वो
चल रहे हैं क़तार में सूरज
सुलगती रेत पे तहरीर जो कहानी है
मैं हूँ बेगाना-ए-जहाँ 'अफ़ज़ल'