ये काएनात मुनव्वर है तेरे जल्वों से
तिरे ही जल्वों की हर सम्त इक नुमाइश है
कहाँ वो ताब-ए-नज़र है कि तुझ को देख सकूँ
तिरी नज़र से तुझे देखने की ख़्वाहिश है
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1054) Peoples Rate This
अश्क आँखों में लिए आठों पहर देखेगा कौन
दर-ब-दर भटका करेंगे रास्ता ढूँडेंगे लोग
मिरी दीवानगी की हद न पूछो तुम कहाँ तक है
अब भी रातें मिरी महकती हैं
तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं
अब तो हर एक अदाकार से डर लगता है
दश्त में तपते ग़ुबारों से तयम्मुम कर के
ग़मों का एक तूफ़ाँ दिल के अंदर शोर करता है
ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ
दवा-ए-दर्द-ए-ग़म-ओ-इज़्तिराब क्या देता
इस क़दर जल्वा-ए-जानाँ को हैं बे-ताब आँखें
सुलगती रेत पे तहरीर जो कहानी है