दर-ब-दर भटका करेंगे रास्ता ढूँडेंगे लोग
तो नहीं होगा तो तेरा नक़्श-ए-पा ढूँडेंगे लोग
रौशनी के वास्ते कूज़ा-गरों के शहर में
हम नहीं होंगे तो मिट्टी का दिया ढूँडेंगे लोग
Javed Akhtar
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Allama Iqbal
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तू है ज़ाहिर परस्त ऐ दुनिया
ग़मों का एक तूफ़ाँ दिल के अंदर शोर करता है
कर दिया ख़ुद को समुंदर के हवाले हम ने
अश्क आँखों में लिए आठों पहर देखेगा कौन
यादों के नशेमन को जलाया तो नहीं है
जो महकता है बू-ए-उर्दू से
ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ
शे'र की मैं रदीफ़ बन जाऊँ
चल रहे हैं क़तार में सूरज
हिज्र के मारों की तक़दीर भी क्या होती है
जिन्हें ज़मीर की दौलत ख़ुदा ने बख़्शी है
मैं हूँ बेगाना-ए-जहाँ 'अफ़ज़ल'