इस क़दर जल्वा-ए-जानाँ को हैं बे-ताब आँखें
अपने परदेसी का जैसे कोई दस्ता देखे
इश्क़-ए-जानाँ में फ़ना हो गई मेरी हस्ती
मौत से कह दो कि आए मिरा मरना देखे
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ये हक़ीक़त है वो कमज़ोर हुआ करती हैं
तू है ज़ाहिर परस्त ऐ दुनिया
उस की ख़ुश्बू से मोअ'त्तर है मिरी तन्हाई
कर दिया ख़ुद को समुंदर के हवाले हम ने
सुलगती रेत पे तहरीर जो कहानी है
अश्क आँखों में लिए आठों पहर देखेगा कौन
अपनी तन्हाइयों के ग़ार में हूँ
दर-ब-दर भटका करेंगे रास्ता ढूँडेंगे लोग
तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं
चल रहे हैं क़तार में सूरज
मिरी दीवानगी की हद न पूछो तुम कहाँ तक है
दिखा न ख़्वाब हसीं ऐ नसीब रहने दे