मैं ज़बाँ रखते हुए ख़ामोश हूँ
मुझ को कैसी बे-ज़बानी दे गया
मैं अभी नन्हा सा पौदा था मगर
मुझ को फ़िक्र-ए-बाग़बानी दे गया
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होता था जिन्हें देख के मसरूर मैं 'अफ़ज़ल'
अश्क आँखों में लिए आठों पहर देखेगा कौन
आसमानों पे नज़र आती है उस की सुर्ख़ी
ये हक़ीक़त है वो कमज़ोर हुआ करती हैं
यादों के नशेमन को जलाया तो नहीं है
ग़मों का एक तूफ़ाँ दिल के अंदर शोर करता है
तेरे जल्वों को रू-ब-रू कर के
जो मिरी आरज़ू नहीं करता
ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ
सुलगती रेत पे तहरीर जो कहानी है
मैं हूँ बेगाना-ए-जहाँ 'अफ़ज़ल'