मिरी नज़र तो ख़लाओं ने बाँध रक्खी थी
मुझे ज़मीं से कहाँ आसमाँ दिखाई दिया
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ये कैसे ख़्वाब की ख़्वाहिश में घर से निकला हूँ
सब को बता रहा हूँ यही साफ़ साफ़ मैं
कौन सी ऐसी कमी मेरे ख़द-ओ-ख़ाल में है
तेरी दुनिया से ये दिल इस लिए घबराता है
देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं
मिरी तो आँख मिरा ख़्वाब टूटने से खुली
तू परिंदों की तरह उड़ने की ख़्वाहिश छोड़ दे
चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँ
मैं सुन रहा हूँ जो दुनिया सुना रही है मुझे
मैं एक इश्क़ में नाकाम क्या हुआ 'गौहर'
ज़मीं से आगे भला जाना था कहाँ मैं ने