देखने भी जो वो जाते हैं किसी घायल को
इक नमक-दाँ में नमक पीस के भर लेते हैं
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नहीं करते वो बातें आलम-ए-रूया में भी हम से
हुए ऐसे ब-दिल तिरे शेफ़्ता हम दिल-ओ-जाँ को हमेशा निसार किया
ख़ल्वत-सरा-ए-यार में पहुँचेगा क्या कोई
परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं
सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं
रहा करते हैं यूँ उश्शाक़ तेरी याद ओ हसरत में
बुलबुल का दिल ख़िज़ाँ के सदमे से हिल रहा है
लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे
हमेशा शेफ़्ता रखती है अपने हुस्न-ए-क़ुदरत का
दुखा देते हो तुम दिल को तो बढ़ जाता है दिल मेरा
ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की
तलाश-ए-क़ब्र में यूँ घर से हम निकल के चले