इश्क़ हो जाएगा मेरी दास्तान-ए-इश्क़ से
रात भर जागा करोगे इस कहानी के लिए
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रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं
जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का
जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था
जवानी आई मुराद पर जब उमंग जाती रही बशर की
पाया तिरे कुश्तों ने जो मैदान-ए-बयाबाँ
नाहक़ ओ हक़ का उन्हें ख़ौफ़-ओ-ख़तर कुछ भी नहीं
लिक्खा है जो तक़दीर में होगा वही ऐ दिल
जोखम ऐ मर्दुम-ए-दीदा है समझ के रोना
कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो
तीर-ए-नज़र से छिद के दिल-अफ़गार ही रहा