क़ुर्बतें लाख ख़ूब-सूरत हों
दूरियों में भी दिलकशी है अभी
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हवा में नश्शा ही नश्शा फ़ज़ा में रंग ही रंग
ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
कशीदा सर से तवक़्क़ो अबस झुकाव की थी
जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है
जब तिरी याद के जुगनू चमके
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
जिस्म शो'ला है जभी जामा-ए-सादा पहना
हर कोई तुर्रा-ए-पेचाक पहन कर निकला
मयूरका