Heart Broken Poetry of Ahmad Mushtaq (page 2)
नाम | अहमद मुश्ताक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Mushtaq |
जन्म की तारीख | 1933 |
जन्म स्थान | Lahore |
शाम-ए-ग़म याद है कब शम्अ' जली याद नहीं
शाम होती है तो याद आती है सारी बातें
शबनम को रेत फूल को काँटा बना दिया
सफ़र नया था न कोई नया मुसाफ़िर था
रुख़्सत-ए-शब का समाँ पहले कभी देखा न था
रात फिर रंग पे थी उस के बदन की ख़ुशबू
पता अब तक नहीं बदला हमारा
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
नाला-ए-ख़ूनीं से रौशन दर्द की रातें करो
मुसलसल याद आती है चमक चश्म-ए-ग़ज़ालाँ की
मोनिस-ए-दिल कोई नग़्मा कोई तहरीर नहीं
मिल ही आते हैं उसे ऐसा भी क्या हो जाएगा
मंज़र-ए-सुबह दिखाने उसे लाया न गया
मलाल-ए-दिल से इलाज-ए-ग़म-ए-ज़माना किया
लुभाता है अगरचे हुस्न-ए-दरिया डर रहा हूँ मैं
किस शय पे यहाँ वक़्त का साया नहीं होता
किस रक़्स-ए-जान-आे-तन में मिरा दिल नहीं रहा
किस झुटपुटे के रंग उजालों में आ गए
ख़्वाब के फूलों की ताबीरें कहानी हो गईं
ख़ून-ए-दिल से किश्त-ए-ग़म को सींचता रहता हूँ मैं
ख़ैर औरों ने भी चाहा तो है तुझ सा होना
खड़े हैं दिल में जो बर्ग-ओ-समर लगाए हुए
कैसे उन्हें भुलाऊँ मोहब्बत जिन्हों ने की
कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों पे निगाह थी
कहाँ की गूँज दिल-ए-ना-तवाँ में रहती है
कभी ख़्वाहिश न हुई अंजुमन-आराई की
इश्क़ में कौन बता सकता है
इन मौसमों में नाचते गाते रहेंगे हम
हर लम्हा ज़ुल्मतों की ख़ुदाई का वक़्त है
हमें सब अहल-ए-हवस ना-पसंद रखते हैं